अतीत
भुलाना चाहूं अतीत मैं अपना ,पर ना इसे भुला मैं पाऊँ
अपने मॅन की पीढ़ा को, हँसी की चादर तले छिपाऊँ
अपने मॅन की पीढ़ा को, हँसी की चादर तले छिपाऊँ
बीते लम्हो की पीड़ा को दफ़नाया था, मॅन के किसी कोने में
लगी रही मैं फ़र्ज़ निभाने पत्थर रख, कर अपने सीने पे
लगी रही मैं फ़र्ज़ निभाने पत्थर रख, कर अपने सीने पे
याद कभी भी जब तुम आए,गुपचुप मैने आँसू बहाए,
इस डर से की दर्द यह मेरा कहीं अपनो को नज़र ना आए
संवार दिया जीवन इनका अपने अथक परिश्रम से,
पर अब तक गये हैं तन मॅन दोनो आँसू भी सैलाब हैं बन गये,
रिसने लगे हैं ज़ख़्म यह मेरे, पीड़ा अब यह सही ना जाए
कौन है आ करके जो हमदर्दी का मरहम लगाए
पर अब तक गये हैं तन मॅन दोनो आँसू भी सैलाब हैं बन गये,
रिसने लगे हैं ज़ख़्म यह मेरे, पीड़ा अब यह सही ना जाए
कौन है आ करके जो हमदर्दी का मरहम लगाए
घायल तो मुझको तुमने भी किया था , दर्द तो तब भी बहुत पिया था
पर जीवन में लक्ष्य था भारी, मेरे कंधो पर थीमेरे घर की ज़िम्मेवारी
पर जीवन में लक्ष्य था भारी, मेरे कंधो पर थीमेरे घर की ज़िम्मेवारी
बहुत थक चुकी हूँ अब मैं,चिर निद्रा में सोना चाहती हूँ
पल पल तिल तिल मैं मरती हूँ, पास तुम्हारे आना चाहती हूँ
पल पल तिल तिल मैं मरती हूँ, पास तुम्हारे आना चाहती हूँ
चाह है दूर कहीं निकल मैं जाऊं, वापिस लौट के फिर ना आऊँ
बोलो आओगे क्या मुझको लेने ,अब यह पीड़ा सह ना पाऊँ
बोलो आओगे क्या मुझको लेने ,अब यह पीड़ा सह ना पाऊँ
सुलेखा डोगरा २९-०१-२००६