शुक्रवार, 18 मई 2012



  • ‎`स्नेह की मूर्त, ममता का सागर, ह्रदय में लेकर प्यार अपार
    ईश्वर ने भेजा है मां को देकर अपना रूप नायाब
    बिछड़ी थी मां बरसो पहले,लेकिन जीवित है मेरे दिल में
    मूँद लेती हूँ जब भी आँखें, आ जाती है वो पल भर में
    वो प्यारा सा चेहरा मां का, बचपन की याद दिलाता है
    मां जैसा न दिखता कोई, मन तरस के रह जाता है
    अब तो समय अपना भी आया, पर कुछ सोच के मैं मुस्कुराती हूं
    दिल चाहता है मां, फिर तेरी बेटी बन कर आऊँ मैं
    खेलूंगी फिर गोद में तेरी, फिर वो ममता पाऊँ मैं
    पहले थी मैं छोटी सबसे, अब बढकी बन कर आऊँ मैं
    अपने baal  हठ से मैया तुझको खूब सताऊँ मैं

    नमन है मेरा हर मां को, मां है जग में सबसे महान
    , शीश झुका कर हर जननी को हम सब करते हैं प्रणाम

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