बुधवार, 20 फ़रवरी 2013




शीतल झरने सी बहती है 
ममता सदा लुटाती है 
आंचल की छाया देती है 
पीर पैगंबर जनती है 
ईश्वर का स्वरूप होती है 
वो जग में मां कहलाती है 

गंगा जैसी पावन है 
रितुओ में  सुखमय सावन है 
ईश्वर   का अनमोल वरदान है वो 
संतान के सुख में जीती है 
वो जग में मां कहलाती है 

मुस्कान लबो पर रहती है 
फूलो की नाजूक डाळी है 
पर हर मुश्किल में ढाल बन जाती है 
वो जग में मां कहलाती है 

रातो में लोरी गाकर हमे सुलाती है 
जादू की जफ्फी देती है ,
 हर बला से हमें बचाती है 
हमे सूखे मे सुलाकर  
खुद गीले मे सो जाती है 
वो जग में मा केहलाती है 

जिसकी गोद में आंखे खोली 
वो है बच्चो की पहली हमंजोली  
जीने का अर्थ सिखाती है 
हर मोड पे  साथ निभाती है 
वो जग में मां कहलाती है 

हमको चलना सिख्लाती है 
गीता का ज्ञान सुनाती है 
प्रथम गुरु कहलाती है 
वो जग में मा कहलाती है 

अब सून लो मेरा संदेश प्यारो 
जब तुम सक्षम हो जायोगे ,
 जीवन का लक्ष्य पा जायोगे 
तो हरगिज ये मत भुला देना 
सफल राह में छिपि है आशीष मां की 
थोडा सा श्रेय, थोडी सी मोहब्बत 
उस मां को भी तुम दे देना 
वो हर खता माफ कर देती है 
क्योकि वो तो मां कहलाती है  

सुलेखा डोगरा 
तिथि :19.02 .2013 

34,Studlandway, Compton Acre 
Westbridgford 
NG 2, 7 TS 

Nottingham   

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