शीतल झरने सी बहती है
ममता सदा लुटाती है
आंचल की छाया देती है
पीर पैगंबर जनती है
ईश्वर का स्वरूप होती है
वो जग में मां कहलाती है
गंगा जैसी पावन है
रितुओ में सुखमय सावन है
ईश्वर का अनमोल वरदान है वो
संतान के सुख में जीती है
वो जग में मां कहलाती है
मुस्कान लबो पर रहती है
फूलो की नाजूक डाळी है
पर हर मुश्किल में ढाल बन जाती है
वो जग में मां कहलाती है
रातो में लोरी गाकर हमे सुलाती है
जादू की जफ्फी देती है ,
हर बला से हमें बचाती है
हर बला से हमें बचाती है
हमे सूखे मे सुलाकर
खुद गीले मे सो जाती है
खुद गीले मे सो जाती है
वो जग में मा केहलाती है
जिसकी गोद में आंखे खोली
वो है बच्चो की पहली हमंजोली
जीने का अर्थ सिखाती है
हर मोड पे साथ निभाती है
वो जग में मां कहलाती है
हमको चलना सिख्लाती है
गीता का ज्ञान सुनाती है
प्रथम गुरु कहलाती है
वो जग में मा कहलाती है
अब सून लो मेरा संदेश प्यारो
जब तुम सक्षम हो जायोगे ,
जीवन का लक्ष्य पा जायोगे
जीवन का लक्ष्य पा जायोगे
तो हरगिज ये मत भुला देना
सफल राह में छिपि है आशीष मां की
थोडा सा श्रेय, थोडी सी मोहब्बत
उस मां को भी तुम दे देना
वो हर खता माफ कर देती है
क्योकि वो तो मां कहलाती है
सुलेखा डोगरा
तिथि :19.02 .2013
34,Studlandway, Compton Acre
Westbridgford
NG 2, 7 TS
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